छिन्दवाड़ा जिला में भूजल संसाधन उपलब्धता की स्थिति का भौगोलिक विश्लेषण

Abstract

पानी की समस्या हमारे देश में अब सामान्य हो गयी है। देश के अधिकांश गांव ऐसे है जहा पीने योग्य पानी उपलब्ध नहीं है। जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ रही है। पानी की समस्या ग्राम व नगर नियोजकों पर भी दबाव बना रही है। उनके लिये समस्या है कि पानी कहा से प्राप्त हो। वस्तुतः वनों का कटना, शहरों का अनियंत्रित विस्तार और जनसंख्या वृद्धि ही इसका प्रमुख कारण नही है बल्कि उपलब्ध जल के उचित नियोजन का अभाव भी इस समस्या को और बढ़ा रहा है। आज पानी संग्रहण करने की प्रवृत्ति का सर्वथा लोप हो चुका है। जबकि एक सदी पहले ऐसी बात नही थी, इससे भी और आगे जाये तो हम पाते है कि अधिकांश नगरों को बसाया ही नदियों के किनारे गया। ऐसे में तालाबों, झीलों, नहरों आदि के रखरखाव की उत्तरदायित्व भी वहाँ के रहने वालों पर ही होता था, और वे उसे निभाते भी थे, परंतु जैसे-जैसे समाज आधुनिक होता गया इन तालाबों, झीलों आदि की महता हमारे लिये कम होती गई और इनकी उपेक्षा ने अतिशीघ्र ही तालाबों के अस्तित्व को समाप्त कर दिया ओर यहीं से प्रारम्भ हुई पानी की कमी की समस्या। हमारे देश तथा अध्ययन क्षेत्र छिन्दवाड़ा जिला में जल की समस्या संकटमय रूप लेती जा रही है। विश्व स्तर पर भारत ‘वाटर स्ट्रेस कंट्री’ (Water Stress Country) की सूची में सम्मिलित हो गया है। मानव ही नही अपितु प्राणिमात्र के जीवन के लिये जल से अधिक अनिवार्य संसाधन कोई नही है। इसीलिये जल संचयन व संरक्षण वर्तमान काल की सबसे बड़ी आवश्यकता है। ‘जल जीवन मिशन’ जैसी महत्वाकांक्षी योजना के माध्यम से स्थानीय जलस्रोतों के परिवर्धन, भूजल स्रोतों के पुनर्भरण पर बल दिया जा रहा है। वल्र्ड वाइल्ड लाइफ फण्ड (WWF) का आकलन है कि विश्व के प्रमुख 100 नगरों में पेयजल की भारी न्यूनता आने वाली है। इसमें भारत के 30 प्रमुख नगर सम्मिलित है। छिन्दवाड़ा नगर तो प्रारम्भिक काल से ही पेयजल की समस्या से अछूता रहा है। लगातार बढ़ते हुए इस संकट को देखते हुए शासन द्वारा वाटर हार्वेस्टिंग (Water harvesting) वर्षाजल संचयन (Rain Water conservation) तथा (Catch the rain) जैसे विकल्पों पर बल दिया जा रहा है। इस हेतु अब नये-नये रोजगार के अवसर भी जन्म ले रहे है। जैसे जल-विज्ञानी (Water Scientists ) जल संरक्षक (Water Conservationist) तथा जल प्रबन्धक (Water manager) इत्यादि

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